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सुप्रीम कोर्ट:1962 का आदेश हर पत्रकार को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है,पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह केस रद्द.रिपोर्ट@हिलवार्ता

30 मार्च 2020 में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ का एक शो स्ट्रीम हुआ था जो भाजपा के हिमाचली नेता को नागवार गुजरा और उन्होंने दुआ के खिलाफ शिकायत की । हिमाचल पुलिस ने पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया ।
मामला दर्ज होने के बाद दुआ सुप्रीम कोर्ट चले गए जिसके बाद उन्हें पहले गिरफ्तारी पर राहत मिली । और आज एक साल बाद पत्रकार विनोद दुवा के खिलाफ ने राष्ट्र द्रोह के मुकदमे को रद्द कर दिया है । उन पर आरोप लगाया गया था कि दिल्ली दंगों पर केंद्रित रिपोर्टिंग के दौरान,उन्होंने फर्जी खबर के जरिये दंगा भड़काने,एवं मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित की है ।

विनोद दुआ ने अपने खिलाफ लगाए राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करने के साथ ही कोर्ट से आग्रह किया था कि 10 वर्ष तक अनुभव वाले किसी भी पत्रकार पर तब तक एफआईआर न हो जब तक कि हाईकोर्ट जजेज द्वारा गठित पैनल मामले में संज्ञान ले । कोर्ट ने ऐसा करना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल माना और कहा कि यह उसके क्षेत्र में अतिक्रमण होगा लिहाजा यह प्रस्ताव खारिज हो गया ।
इस मामले में 14 जून 2020 में भी सुनवाई हुई थी जिसमे दुआ को अगले आदेश तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया गया था लेकिन उनके खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था .

ज्ञात रहे कि पिछले वर्ष विनोद दुआ पर दर्ज हुए मामले पर कोर्ट में 6 अक्टूबर को सुनवाई हुई थी जिसमे न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने हिमाचल सरकार और मामले में शिकायतकर्ता की दलीलें सुनने के बाद मामला सुरक्षित रख लिया था और कोर्ट ने आदेश दिया था कि विनोद दुआ को हिमाचल पुलिस द्वारा पूछे जाने वाले किसी भी पूरक सवाल का जबाब देने की जरूरत नहीं है ।
आज विनोद दुआ के खिलाफ मामला रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वर्ष 1962 का आदेश हर पत्रकार को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है ।
आपको याद दिलाना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1962 में पांच जजों की बेंच ने केदारनाथ बनाम बिहार सरकार के इस मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना या फिर प्रसाशन पर कॉमेंट करने से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता है । राजद्रोह का मामला तभी बन सकता है जबकि वक्तव्य /कंटेंट में हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने के तत्व मौजूद हों ।
पूर्व में भी ऐसे ही एक मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने निर्णय में कहा था कि अनुच्छेद 19(1)A के तहत पत्रकारों को बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मिले अधिकार उच्च स्तरीय हैं । लेकिन असीमित नहीं । ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी और महत्वपूर्ण है । जिसमे शीर्ष अदालत ने कहा है कि भारत की स्वतंत्रता एक पत्रकार के बिना भय के बात कह पाने तक ही सुरक्षित है


बार बार कोर्ट की टिप्पणियों के बावजूद कई मामलों में पत्रकारों के ऊपर मामले दर्ज होते आए हैं, जिनमे अधिकतर बदले की भावना से प्रेरित और राजनीतिक दबाव में किए जाते हैं । विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह का मामला भी एक पार्टी के नेता की शिकायत के बाद दर्ज हुआ । दुआ द्वारा संपादित कंटेंट में आरोप ठीक न होने वजह जाने माने पत्रकार को राहत मिली है । आज की टिप्पणी के बाद क्या सिस्टम पत्रकारों के खिलाफ साजिशन शिकायत की तहकीकात करेगा ?

ओपी पांडेय @एडिटर्स डेस्क

हिलवार्ता न्यूज

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