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*सत्तर पार के शिखर’बहुचर्चित उपन्यास के लेखक पानू खोलिया नहीं रहे.श्रधांजलि@हिलवार्ता

हिंदी साहित्य के जाने माने लेखक डॉ पानू खोलिया जी आज पंचतत्व में विलीन हो गए वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे । उत्तराखंड के अलमोड़ा जिले के देवली गांव में 13 अक्टूबर 1939 को जन्मे डॉ खोलिया हाल सेवानिवृत्त के बाद हल्द्वानी जगदम्बा नगर में रहते थे उनके निधन पर साहित्यप्रेमियों /पत्रकारों ने गहरा दुख व्यक्त किया है ।

डॉ.खोलिया राजस्थान में हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों में शुमार रहे और उन्होंने जीवन पर्यंत उच्च शिक्षा के विभिन्न पदों पर रहते हुए लेखन में ऊंचा स्थान प्राप्त किया । उनकी उच्च शिक्षा देवी लाल साह कालेज बाद में अलमोड़ा परिसर नाम से जाना जाता है से हुई , तमाम अभावों के चलते उन्होंने एमए हिंदी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर राजस्थान को अपनी कर्मस्थली बनाया, भरतपुर और डीडवाना में रहते अध्यापन किया जीवन पर्यंत राजस्थान में उच्च शिक्षा की अलख जगाई । और साहित्य जगत में अपना ऊंचा मुकाम हासिल किया । उनके लेखन का कई साहित्य के जानकारों ने विश्लेषण किया है पढ़ने पर पता चलता है कि वह हिंदी के समकालीन साहित्यकारों में किस कदर लोकप्रिय रहे हैं ,इस बात से समझा जा सकता है कि दर्जनों हिंदी के साधकों लेखकों ने उनके साहित्य को हिंदी साहित्य के गिने चुने लेखकों के समकक्ष रखा है , और उन्हें ऊंचा दर्जा दिया है ।

प्रो. पानू खोलिया जी को 1960 से 1980 के बीच का राजस्थान के कथाकारों में सर्वश्रेष्ठ कथाकार माना जाता है साहित्य अकादमी राजस्थान के पृष्ठ पर पानू खोलिया के साहित्य सृजन पर हिंदी की प्रतिष्ठित लेखिका श्रीमती सरिता चौधरी लिखती हैं कि छठे – आठवें दशक के बीच सामाजिक परिवेश ओर इस परिवेश के मूल मध्यवर्गीय समाज के जीवन मूल्यों को केन्द्र बनाकर जिन लेखकों ने हिन्दी कथा साहित्य को दृटि दिशा और पहचान दी है, उनमें पानू खोलिया का विशिष्ट स्थान है। इन्होंने कहानी व उपन्यास को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर मध्यवर्ग का चित्रण बारीकी से किया है,बहुत ज्यादा कहानियाँ न लिखकर भी अपनी अलग पहचान बनाना इनकी विशिष्टता है। इसी विशिष्टता के कारण ही ये अपने समकालीनों में विशेष में पहचाने जाते हैं। पानू खोलिया सन् १९६०-१९८० के दशक के बीच पनपने वाले राजस्थान के कथाकारों में मुख्य हैं अर्थात साठोतरी पीढी के कथाकारों में इनका नाम सर्वोपरी है।हिन्दी साहित्य जगत में छठे-आठवें दशक के सृजकों में पानू खोलिया का विशिष्ट स्थान है। जिनमें पूराने से टूटकर चलने का आग्रह नहीं है, किन्तु कोई बिन्दु ऐसा अवश्य है जो इन्हें अन्य समकालीनों से स्पष्टतः अलग कर देता है। हमारी सामाजिक व्यवस्था की विसंगतियों, नैतिक मूल्यों का हांस, सामाजिक-राजनैतिक भ्रष्टाचार, मोहभंग, टूटता परिवेश, घटते मूल्य, आदि को अपनी रचनाओं में अति सूक्ष्म तरीके से उकेर कर पाठकों के समक्ष अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। पहले बाह्य जगत की संवेदना से प्रभावित होना और बाद में अन्तर्मन में उनके उद्वेलन व अनुभूतियों के टकराव के विस्फोट का चित्रण करना इनकी मुख्य विशेषता है। इन्होंने समाज की रीढ की हड्डी रूपी मध्यवर्गीय सामाजिक व्यक्ति की मनोव्यथाओं को रेखांकन करने के साथ-साथ समाज के प्रत्येक पक्ष पर दृष्टि डाली है और पाठक-वर्ग की बंद पलकों को खोलकर समाज के यथार्थ का आईना दिखाया है,

आगे श्रीमती चौधरी लिखती हैं – हमारी सामाजिक व्यवस्था की विसंगतियों, नैतिक मूल्यों का ह्रास, सामाजिक-राजनैतिक भ्रष्टाचार, मोहभंग, टूटता परिवेश, घटते मूल्य, आदि को अपनी रचनाओं में अति सूक्ष्म तरीके से उकेर कर पाठकों के समक्ष अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। पहले बाह्य जगत की संवेदना से प्रभावित होना और बाद में अन्तर्मन में उनके उद्वेलन व अनुभूतियों के टकराव के विस्फोट का चित्रण करना इनकी मुख्य विशेषता है। इन्होंने समाज की रीढ की हड्डी रूपी मध्यवर्गीय सामाजिक व्यक्ति की मनोव्यथाओं को रेखांकन करने के साथ-साथ समाज के प्रत्येक पक्ष पर दृष्टि डाली है और पाठक-वर्ग की बंद पलकों को खोलकर समाज के यथार्थ का आईना दिखाया है

इधर नए वर्ष का जश्न चल रहा था उधर साहित्य जगत की महान हस्ती के देहावसान की खबर सोशल माध्यम से प्राप्त हुई कि हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर पानू खोलिया जी नहीं रहे । खबर इतनी देर बाद कि उनकी अंतिम यात्रा में अफसोस कई लोग शामिल नहीं हो सके । जिस लेखक का पूरा जीवन 60 के दशक के मध्यवर्ग की व्यथा की कथा कहते अनगिनत कहानियों को आकार देने में बीत गया उसे अपनी माटी का प्रेम अंतिम सालों में हल्द्वानी तक ले आया । और उनका पसंदीदा सब्जेक्ट मध्यवर्ग उन्हें कम ही पहचान सका जिसका एक कारण चूंकि उनका कार्यस्थल राजस्थान रहा इसलिए शायद । कुछ वर्ष पहले तक किसी साहित्यिक कार्यक्रम मे उनका आना जाना रहा लेकिन दो तीन साल से उनका संपर्क टूट सा गया था ,उन्हें जैसा सम्मान अपनी माटी से मिलना चाहिए था शायद वह नहीं मिल पाया ।

चूंकि उत्तराखंड में उनकी लोकप्रियता हिंदी के जानकार लोगों तक ही सीमित रही रही जबकि राजस्थान में उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता हासिल थी हिंदी के इस महान सेवक साधक को हिलवार्ता की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।

ओ पी पांडेय

@एडिटर्स डेस्क

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