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कलर ब्लाइंड किसे कहते हैं इसके लक्षण क्या हैं ,इसका इलाज कहाँ होता है , आइये देखते हैं ।

·चंद्रशेखर जोशी पेशे से पत्रकार हैं विज्ञान पढ़े हैं, जिस वजह हर आर्टिकल ,फीचर ,व्यंग, में  विज्ञान का पुट डालना उनके लेखन की विशेषता है । राजनीतिक उठापटक को अपने नजरिये से उन्होंने कैसे देखा है कैसे तारतम्य से इस पर प्रकाश डाला है आइये पढ़ते हैं ……
वर्णान्धता घातक दोष..
राजनैतिक आंखों में यह बहुत गहरा होता है। चुनावी मौसम में इसके मरीजों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाती है। चिकित्सा विज्ञान में इसे कलर ब्लाइंडनेस (Colour blindness) कहते हैं। आंखों में उम्र के साथ यह दोष पैदा होता है, समाज में अमूमन पांच साल में यह घातक श्रेणी तक पहुंच जाता है।
…दृष्टि का जीवन में बड़ा महत्व है जनाब। असल में कलर ब्लाइंडनेस दिमाग को प्रभावित करता है। ऐसी आंखें सही-गलत की पहचान नहीं कर पाती। कई बार लगता है मानो बहुतेरे लोग अंधे हैं, पर यह अंधे नहीं होते बल्कि सही को पहचानने की क्षमता खो चुके होते हैं। दृष्टि (Vision) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का भाग है। इसमें प्रकाश के संकेतों को ग्रहण करने, उन्हें प्रसंस्कृत करने और इसके आधार पर सही-गलत को परखने की क्षमता पैदा होती है। जिसकी दृष्टि साफ न हो वह गलत को सही मान दुर्घटना का शिकार हो जाता है। सामने आ रहे खतरे का हल वह सीमा पार समझ कर मगन हो उठते हैं। ऐसे ही अपने परिवार के संकटों का हल इनको दूर देश की तबाही में नजर आता है। हरियाली की चाह रखने वाली आंखें खूनी रंग में सुकून ढूंढती हैं।
…ऐसा कहते हैं कि इंसानी विकास में सभी के पूर्वज प्रोसिमियन थे और वे सिर्फ एक या दो ही रंग देख पाते थे। 3-4 करोड़ वर्ष पूर्व वानरों में एक विभाजन हुआ। लंबे विकास क्रम के बाद जीन्स में हुए परिवर्तन से तीन रंगों को देखने की क्षमता पैदा हुई। तब जंगल में पके फल खोज पाना आसान हुआ। युगों बाद तीन रंगों से बनने वाले विविध रंगों को देखने की क्षमता विकसित हुई। लेकिन जिनकी विकास प्रक्रिया थम गई वे आज भी दो ही रंग देख पाते हैं। राजनीति में उनको या तो कांग्रेस समझ आती है या फिर भाजपा, इनके अलावा तीसरा कोई रंग उनके दिमाग को नहीं भाता।
…चिकित्सक बताते हैं कलर ब्लाइंडनेस पुरुषों में अधिक होती है। महिलाओं में यह नहीं के बराबर होती है। ऐसे लोगों की पहचान क्षमता क्षीर्ण हो जाती है। ये लाल, हरे और नीले रंगों से बनने वाले अन्य रंगों को नहीं समझ पाते। इस विजन डेफीशिएंसी वाले घोर अंधकार में भी अजीबो-गरीब रंग देखते हैं और फूले नहीं समाते। वाहन चलाते समय पास आ रहे खतरे को भांपना इनके बस की बात नहीं होती। जिस घर का संचालक इस दोष का शिकार हो वह पूरे परिवार को गड्ढे में धकेल देता है।
…रीढ़धारी जीवों के रेटिना में आंखें ही वह अंग हैं जो दिमाग को वस्तु के परीक्षण के लिए संदेश भेजती हैं। रेटिना में लाखों रॉड्स (छड़) और कोन्स (शंकु) के आकार की कोशिकाएं पाई जाती हैं। रॉड्स प्रकाश के प्रति अति संवेदनशील होती हैं, जो ब्लैक-एंड-व्हाइट और परिधीय दृष्टि (peripheral vision) में मददगार होती हैं। इनकी मदद से ही हम अंधेरे या काफी कम रोशनी में भी देख पाते हैं। जिसकी रेटिना की राड्स काम करना बंद कर दें वे उजाले में भी भ्रमित रहते हैं।
…असल बात ये कि आंखों में अलग-अलग तरंग-दैर्ध्य वाले प्रकाश के लिए तीन प्रकार के संवेदी कोन होते हैं। ये कोन रंगों के लिए दिमाग को विभिन्न संकेत भेजते हैं। रंगों को देखने की यह प्रक्रिया ‘आरजीबी रंग मॉडल’ कही जाती है। यही संकेत दिमाग में सही तस्वीर उभारते हैं। समाज में जिनकी आंखों में सरकारी रंग फिट हो चुका हो वे अन्य किसी रंग को स्वीकार नहीं कर पाते।
…वर्णान्धों की हरकतें देख कई बार मन खौल उठता है, पास जाकर देखो तो ये निरीह प्राणी होते हैं। इनके लड़खड़ाते कदम खुद की जान जोखिम में डालते हैं। अपनी अक्ल न सुधारें तो ये खुद के दुश्मन, समाज के दुश्मन, इस दोष वालों का कोई इलाज नहीं।
स्वस्थ आंखों से गलत को पहचानें, सही की खोज में आगे बढ़ें.
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Hillvartadesk
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