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उत्तराखण्ड

सरकार और अस्पतालों की लड़ाई में स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल होने का अंदेशा

  1. पिछले हफ्ते दिन से प्राइवेट अस्पताल बंद हैं  धीरे धीरे अस्पताल के कर्मचारी आंदोलन में शिरकत करने  मुखर होने की सुचना  आ रही हैं  चूंकि उतराखण्ड में  सत्तर प्रतिशत आमजन  छोटे प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर है जो कि बन्द है  इससे जुड़े  कर्मचारीअपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं  भी सड़क में उतरने का मन बना रहे है  ।

इस सब का  कारण क्लीनिकल स्टेब्लिश्मेन्ट बिल है जिसकी वजह  आम आदमी भी  परेशान है  अधिकतर को जानकारी नहीं कि डॉकटर हड़ताल में क्यों हैं  पहाड़ गांवों से इलाज के लिए आ रहे सैकड़ों लोग वापस जा रहे हैं  एक मरीज ने बताया कि उसका मेडीकल कालेज में नंबर नही आ रहा उसे जल्दी इलाज चाहिए उसे अपनी बीमारी को बड़ी जगह जल्दी दिखाने को कहा गया  है , लेकिन सभी निजी अस्पताल बंद हैं  । सरकारी सिस्टम को सरकार मेंटेन नही कर पा रही पहाड़ों में डॉक्टर्स की भारी कमी है मरीज मजबूर होकर देहरादून हल्द्वानी हरिद्वार ऋषिकेश रुद्रपुर सहित आसपास के मैदानी इलाकों के प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर हैं ,
सुशीला तिवारी राजकीय मेडीकल कालेज और राजकीय मेडिकल कालेज श्री नगर में अध्य्यन करने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स को राज्य सरकार फीस में छूट प्रदान करती है जिसके एवज में उनसे बांड भरवाया जाता है कि यहां से पासआउट होने के बाद कुछ समय के लिए उनको आवश्यकीय सेवाएं उतराखण्ड के सुदूर पर्वतीय छेत्रो ने देनी अनिवार्य हैं लेकिन बिडम्बना देखिए इनमे से 10 प्रतिशत भी पहाड़ में सेवाएं देना दूर की बात है पहाड़ की ओर देखने जाने को तैयार नहीं हैं सरकारों ने  कई कोशिश के बाद नाकामी ही पाई ,सरकार इस मसले पर हमेशा मजबूर दिखी ।
इधर सरकारों पर स्वास्थ सेवाओं पर सरकार की हीला हवाली  के चलते स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम नहीं करने के आरोप लगभग हर सरकार झेल रही है एक तरफ सरकार सरकारी सुविधाओं से लैस अस्पताल बनाने में बिफल रही वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट अस्पतालों को लगातार लाइसेंस देती रही जिससे गरीब अमीर सब निजी अस्पतालों भरोसे हो गए देखते देखते कई सरकारी डाक्टर अपना क्लिनिक  खोल लिए  उतराखण्ड के सरकारी हॉस्पिटल में कार्यरत अधिकतर डॉ सिस्टम से नाराज होकर बाहर आये या  जिन्हें उपयुक्त इलाज करने में आवश्यक सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा ने भी  अपना क्लिनिक अस्पताल शुरू कर लिया ,अपना अस्पताल उसकी लाइसेंसिंग प्रोसेस सभी होना आवश्यक है जिसे  सरकार ने खुद दिया ,लेकिन प्रोसेस के दौरान  निगरानी कभी ही शायद हुई कि जहाँ अस्पताल बना है वह स्थान मरीज जनसंख्या के हिसाब से उपयुक्त है कि नहीं कभी यह भी कि अस्पतालों में रखा गया स्टाफ मानक के अनुरूप प्रशिक्षित है भी या नहीं !
दूसरी तरफ हॉस्पिटल पर भी नियम कानूनों को धता बताकर अनियमित प्रेक्टिस करने के आरोप लगते रहे  हैं  मरीजों को जबरन आईसीयू में डालने महंगे इलाज , हेल्थ इन्श्योरेंस के जरिये इलाज करा रहे मरीजों को ज्यादा दिन तक भर्ती रखने  ज्यादा पैसा लेंनेे सहित अनावश्यक जांच करवाने के आरोप लगते रहे  है ।
आये दिन इस तरह की खबरों ने सरकारों पर दबाव बनाया कि प्राइवेट अस्पतालों पर संयत प्रेक्टिस के नियम बना  कसने की जरुरत है  इसी  नीयत से नया  कानून लाया  गया जिसे क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट बिल कहा गया ।
केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए इस बिल में मरीजों से तय फीस वसूलने , लेब टेस्ट एमआरआई एक्सरे सहित जांचों की कीमत सरकारी तय रेटों पर करने की अपेक्षा की गई है और साथ ही इलाज के दौरान मरीज को दी जाने वाली सुविधा देने का नियम बना दिया ।
इस सब मे  सबसे पेचीदा यह कि प्रत्यऐक अस्पताल और क्लीनिक को इस बिल में अपना रजिस्टर्ड होना है सरकारी की तर्ज पर मरीज का रिकार्ड मेंटेन करना सहित बहुत सारे बिंदु हैं  सरकार अपेक्षा करती है कि उनके द्वारा बनाये नियम के तहत उनको बाध्यकारी बनाया जा सके
इन नियमो के अतिरिक्त अस्पताल और क्लिनिक के निर्माण के मानक भी तय कर दिए जिसमे कमसे कम और अधिकसे अधिक जमीन पर तय माप होने की बात कही गई है जिससे बहुसंख्य प्रैक्टिसनर्स की दिक्कत है ।
पिछले दो साल से डॉ इस बिल का विरोध कर रहे हैं कुछ बिंदुओं पर मायने में विरोध जायज लगता है जैसे जिन डॉ के क्लिनिक  किसी संपर्क मार्ग में है उनको अगर कहीं मानक के अनुसार शिफ्ट करना पड़ा तो उनकी प्रेक्टिस पर फर्क पड़ेगा ? दूसरा अगर मानक अनुसार हर क्लिनिक को ट्रेंड स्टाफ रखना पड़े तो वर्षों से काम कर रहे लोग बेरोजगार नहीं होंगे ? नए नियम के अनुरूप डॉ कहते हैं जब राज्य में डॉ की कमी है तब आई सी यू में तीन डॉ की नियुक्ति आखिर कैसे होगी ? बिल के कई बिंदु ठीक नहीं हैं  सरकार अपनी अपनी पर अडी  है माननीय हाइकोर्ट से बुधवार तक अपना पक्ष रखने और सरकारी सिस्टम को दुरुस्त करने का आदेश दिया है लेकिन क्या राज्य की जनसंख्या को सरकारी सिस्टम से इलाज संभव है ? अभी ठंड की वजह मरीजो का दबाव कम होता है सब ठीक दिखाई दे रहा है जैसे जैसे मौसम बदलेगा मरीज बढ़ना तय है तब सरकार उपयुक्त कदम उठा लेगी देखना होगा ।
लोकसभा चुनाव को मद्देनजर सरकार इस कदम को जनहित में मानती है उसे लगता है कि जनता प्राइवेट अस्पतालों की कार्यशैली से असंतुष्ट है अतः इसका फायदा वह चुनाव में ले सकती है कि सरकार ने प्राइवेट अस्पताल जो जनता से ज्यादा पैसे लेकर इलाज कर रहे थे को सस्ता करवा दिया है ।
इधर सरकार पर आरोप भी लगने लगे हैं कि सरकार कैसे डॉक्टर्स से दो टूक कह दिया कि बिल में कोई बदलाव सम्भव नहीं है आईएमए के  डॉक्टर ने आरोप लगाया कि सरकार के लिए आम जनता का इलाज महत्वपूर्ण नहीं है सरकार चाहे तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राष्ट्रीय राजमार्गों को जिला मार्गों में परिवर्तित करने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव ला सकती है वहीं जनहित से जुड़े अस्पतालों के मामले में क्लिनिक अस्पताल के लिए तय मानकों में बदलाव को तैयार नही है ?
अभी लगता नहीं कि दोनों पक्ष झुकने को तैयार है लेकिन इस लड़ाई ने आमजन को तकलीफ अब बढ़ने लगी है इतना जरूर है कि अभी किसी तरह की अप्रिय घटना हुई हो कि सरकार और डॉक्टर दबाव महसूस करें क्योंकि ना सरकार को लगता है ना अस्पतालों को लग रहा कि दोनों की प्रतिबद्धता जनता है और उसकी भलाई के लिए दोनो को सर्वसम्मत हल निकलना होगा ।
सरकार को चाहिए कि आईएमए की भवन मानकों में छूट दे जिसके लिए पहाड़ी राज्य की भोगौलिक परिस्तिथिया उसको इसमें छूट देने में आड़े नही आएंगी ।
वहीं डॉक्टर्स को चाहिए कमसे कम ऐसे अस्पतालों के साथ सरकार को समय समय पर रेंडम चेकिंग की अनुमति दे जिसकी कमसे कम तीन बार कंप्लेंट हो चुकी है कि वहां नियमविरुद्ध कार्य हो रहा है । सभी को एक ही लाठी से हांकना तर्कसंगत नहीं लगता । छोटे से क्लिनिक जहा डॉक्टर मरीज का इलाज सम्पूर्ण मनोयोग से करता है और एक बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल को एक नियम से चलाना न तर्कसगत है ना ही व्यवहारिक ।
Hillvarta desk

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